क्या आपको याद है काफी दिलचस्प बॉलीवुड फिल्म पीकू? इसमें अमिताभ बच्चन के किरदार भास्कर बनर्जी को पुरानी कब्ज है, जिससे उनकी जिन्दगी पाचन की समस्या बन कर रह जाती है। इसमें कुछ हास्य है और इसका हम सब से भी संबंध है। भास्कर तरह-तरह का उपचार और सभी आधुनिक उपाय करते हैं लेकिन राहत नहीं मिलती। इस बीच इरफान खान के सुझाव से वे वापस भारतीय कमोड इस्तेमाल करते हैं और आखिर में वह आराम मिलता है जिसकी तलाश थी। यह दृश्य हास्यपूर्ण है हालांकि इसका खास महत्व नहीं है। फिर भी यह बहस छिड़ गई है कि वेस्टर्न कमोड और इंडियन सीट में से कौन सा उपयोग करना बेहतर है।
बात व्यक्तिगत स्वच्छता और आराम की हो तो सही टॉयलेट चुनने से हमारे दैनिक जीवन पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है। दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में वेस्टर्न कमोड और इंडियन सीट को लेकर स्वच्छता के दो अलग-अलग दृष्टिकोण हैं। प्रत्येक के अपने लाभ और कुछ विचार बिन्दु हैं।
वेस्टर्न कमोड बनाम इंडियन सीट
विशेषता | वेस्टर्न कमोड | इंडियन सीट |
---|---|---|
आराम | आराम से बैठने के लिए | स्क्वाट करना बेहतर है |
स्वच्छता | स्वच्छ रखने के लिए सीट की नियमित सफाई चाहिए | सीधे संपर्क कम से कम होता है |
स्वास्थ्य लाभ | चलने की समस्या हो तो यह उपयुक्त होगा। | बेहतर मल त्याग को बढ़ावा देता है |
पानी का खर्च | अधिक पानी खर्च होगा | कम पानी खर्च होगा |
सुलभता | डिज़ाइन में सुलभता | गतिशीलता के मुद्दों के लिए चुनौतीपूर्ण |
मेंटेनेंस | अधिक कम्पोनेंट का नियमित मेंटेनेंस चाहिए। | साधारण डिज़ाइन, आसान रखरखाव |
कीमत | आम तौर पर अधिक कीमत | कम प्रारंभिक लागत |
अधिक स्थायी/टिकाऊ | अधिक टिकाऊ लेकिन रखरखाव भी अधिक | अत्यधिक टिकाऊ, टूटने वाले कम हिस्से |
इतिहास
वेस्टर्न कमोड की शुरुआत और चलन
वेस्टर्न कमोड को पश्चिमी टॉयलेट या बैठने वाले टॉयलेट भी कहते हैं। इसका 19वीं शताब्दी के विक्टोरियन दौर में चलन हुआ। डिजाइन में एक उठी हुई कुर्सी जैसी सीट और फ्लश का सिस्टम था। आज भारत सहित पूरी दुनिया के शहरी क्षेत्रों में इसका पूरा चलन है।
इंडियन सीट की शुरुआत और चलन
इंडियन सीट को आमतौर पर स्क्वाट टॉयलेट कहते हैं। यह हजारों वर्षों से उपयोग में है। इस पारंपरिक डिजाइन के टॉयलेट एशिया के कई हिस्सों में प्रचलित हैं और इनमें जमीन में एक छेद होता है जिसके दोनों ओर पैर रखने की जगह होती है। लोग इस छेद के ऊपर बैठ कर हल्का होते हैं।
आराम की तुलना
वेस्टर्न कमोड का आराम
वेस्टर्न कमोड आपकी पसंद की कुर्सी पर बैठने जैसा है। इस पर लोग आराम से बैठते हैं। विशेष कर बुजुर्ग, चलने-फिरने की समस्या वाले लोग और वे लोग भी, जो स्क्वॉट करने के बजाय तन कर बैठना पसंद करते हैं।
इंडियन सीट का आराम
कुछ लोगों को इंडियन सीट पर कम आराम होता है लेकिन यह बहुत लाभदायक है। स्क्वाटिंग की स्थिति में शरीर आसानी से और पूरा मल त्याग करने में सक्षम होता है। हालांकि इसकी आदत नहीं हो तो स्क्वाट करना बहुत कठिन होता है।
स्वच्छता की तुलना
वेस्टर्न कमोड में स्वच्छता संबंधी लाभ
वेस्टर्न कमोड में सीधे टॉयलेट सीट से संपर्क एक चिंता की बात रहती है। हालांकि नियमित सफाई और आधुनिक फीचर जैसे सेल्फ-क्लीनिंग सीट और टचलेस फ्लश हो तो जरूर स्वच्छ होने का अनुभव होगा।
इंडियन सीट की स्वच्छता
इंडियन सीट से आपका न्यूनतम सीधा संपर्क होता है। इसलिए कीटाणुओं का संक्रमण कम होता है। इसलिए यह सीट खास कर सार्वजनिक या साझा शौचालयों में स्वच्छता रखता है।
स्वास्थ्य पर प्रभाव
वेस्टर्न टॉयलेट पर बैठने में आराम और स्थिरता रहती है, जो चलने-फिरने की समस्या वाले लोगों के लिए अच्छा है। हालांकि कुछ शोध बताते हैं पेट साफ हो इसके लिए सीटिंग से अच्छा स्क्वाटिंग है।
इंडियन सीट पर स्क्वाट करने की वजह से शरीर के लिए मल त्याग करना आसान होता है और कब्ज और पाइल्स जैसी पाचन की समस्याएं भी कम हो सकती हैं।
पर्यावरणीय प्रभाव
पश्चिमी टॉयलेट में आम तौर पर प्रति फ्लश अधिक पानी लगता है। हालाँकि आधुनिक पश्चिमी कमोड में डुअल फ्लश जैसे फीचर हैं जिससे पानी की खपत में बचत होती है।
इंडियन सीट में आम तौर पर कम पानी लगता है, इसलिए ये पर्यावरण के लिए अधिक अनुकूल हैं खास कर पानी की कमी हो।
सुलभता और रखरखाव
वेस्टर्न कमोड बनाने में सुलभता का ध्यान रखा गया है। इसमें सपोर्ट रेल और ऊँची सीटें हैं, इसलिए चलने-फिरने की समस्या वाले लोगों के लिए ये अधिक उपयुक्त हैं।
इंडियन सीटें चलने-फिरने की समस्या वाले लोगों के लिए कठिन हो सकती हैं, क्योंकि उन्हें स्क्वाट करना होगा। बुजुर्गों और जोड़ों की समस्याओं वाले लोगों को इस तरह बैठने में तकलीफ होती है।
दोनों प्रकार के टॉयलेट का रखरखाव
वेस्टर्न कमोड में कम्पोनेंट अधिक होते हैं, जिनका नियमित रखरखाव चाहिए। हालांकि इससे भिन्न इंडियन सीट सिम्पल और रखरखाव में आसान हैं।
कल्चर में महत्व
टॉयलेट का टाइप पसंद करने पर कल्चर का भी प्रभाव पड़ता है
वेस्टर्न कमोड और इंडियन सीट में किसे चुनना है यह अक्सर लोगों के कल्चर से भी प्रभावित होता है। पूरब की संस्कृति में स्क्वाटिंग अधिक स्वाभाविक माना जाता है, जबकि पश्चिमी टॉयलेट में आधुनिकता और आराम है।
सफर के दौरान या स्थानांतरण होने पर यह जरूरी है कि आप अलग-अलग टाइप के टॉयलेट उपयोग करने के अनुकूल हो जाएं। इसके लिए प्रत्येक टाइप के फायदे और नुकसान समझ लीजिए तो आपके लिए बदलाव को अपनाना आसान होगा।
निष्कर्ष
वेस्टर्न कमोड और इंडियन सीट दोनों के अपने-अपने लाभ और कमियाँ हैं। पश्चिमी टॉयलेट आराम और सुविधा देते हैं, जबकि भारतीय टॉयलेट में पेट साफ होने में आसानी और अधिक स्वच्छता भी है। इसलिए सबसे अच्छा विकल्प आपकी निजी ज़रूरतों और आपके कल्चर पर निर्भर करता है। एस्को बाय जैक्वार ग्रुप के पास सस्ते और विश्वसनीय सैनिटरी उत्पादों की बड़ी रेंज है, जो अलग-अलग पसंद और जरूरतों को पूरा करने के लिए तैयार है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न. स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से कौन सी टॉयलेट सीट अच्छी है?
उत्तर. वेस्टर्न कमोड और इंडियन सीट दोनों के अपने-अपने स्वास्थ्य लाभ हैं। भारतीय टॉयलेट मं आप स्क्वाट करते हैं इसलिए पेट साफ होना आसान हो सकता है, जबकि वेस्टर्न कमोड चलने-फिरने की समस्या वाले लोगों के लिए अधिक आरामदायक है।
प्रश्न - चलने-फिरने की समस्या वाले लोगों के लिए कौन बेहतर है?
उत्तर - चलने-फिरने की समस्या वाले लोगों के लिए पश्चिमी टॉयलेट बेहतर हैं क्योंकि उस पर वे आराम से बैठते हैं और इसमें अक्सर सहारा देने के लिए सपोर्ट रेल जैसे फीचर भी होते हें।
प्रश्न - किस प्रकार की सीट को साफ करना आसान है?
उत्तर - इंडियन सीट आम तौर पर अपने साधारण डिज़ाइन के चलते साफ करने में आसान हैं। इसमें ऐसे पार्ट्स कम होते हैं जो गंदे हो सकते हैं या टूट सकते हैं।
प्रश्न - कौन अधिक स्वच्छ है - वेस्टर्न कमोड या इंडियन सीट?
उत्तर -इंडियन सीट अधिक स्वच्छ हैं क्योंकि इसमें सीधे टॉयलेट की सतह से न्यनूतम संपर्क होता है। इसलिए कीटाणुओं के संक्रमण का कम खतरा है। हालाँकि नियमित सफाई से पश्चिमी टॉयलेट भी उतने ही स्वच्छ रहते हैं।